वीडियो जानकारी: 27.12.2020, आमने-सामने शिविर, ऋषिकेश, उत्तराखंड, भारत <br /><br />प्रसंग: <br />माया महा ठगनी हम जानी।।<br />तिरगुन फांस लिए कर डोले<br />बोले मधुरे बानी।।<br />केसव के कमला वे बैठी<br />शिव के भवन भवानी।।<br />पंडा के मूरत वे बैठीं<br />तीरथ में भई पानी।।<br />योगी के योगन वे बैठी<br />राजा के घर रानी।।<br />काहू के हीरा वे बैठी<br />काहू के कौड़ी कानी।।<br />भगतन की भगतिन वे बैठी<br />बृह्मा के बृह्माणी।।<br />कहे कबीर सुनो भई साधो<br />यह सब अकथ कहानी।। ~कबीर साहब<br /><br />~ 'प्रकाश स्वरुप परमात्मा सृष्टिकाल में इस जगत में एक-एक जाल को अनेक प्रकार से विभक्त कर स्थापित करता है और प्रलय काल में सबका संहार कर देता है।' इसका क्या अर्थ है?<br />~ अहंकार क्या है?<br />~ माया क्या है? और वो कैसे ठगती है? <br /><br /><br />संगीत: मिलिंद दाते<br />~~~~~~~~~~